नवरात्रि और व्रत के नियम: सच्ची भक्ति का महत्व

नवरात्रि का समय केवल उपवास या खानपान पर नियंत्रण का नाम नहीं है, बल्कि यह आत्म-शुद्धि और ईश्वर-भक्ति का अवसर है। अक्सर हम सुनते हैं या देखते हैं कि लोग पूछते हैं – “व्रत के क्या नियम हैं?”।
असल में व्रत के नियम बहुत ही सरल और गहरे हैं।
सबसे पहला और बड़ा नियम है – मन को शुद्ध रखना और नीयत को साफ रखना।
व्रत सिर्फ भोजन से नहीं, विचारों से भी होता है
आजकल हम देखते हैं कि कई लोग 9 दिन का व्रत रखते हुए कहते हैं –
“बहुत भूख लगी है, मेरा तो चाय पीने का टाइम हो गया”।
लेकिन व्रत का असली अर्थ इससे कहीं ऊपर है।
हमारी संस्कृति और सभ्यता ने व्रत को केवल शारीरिक भूख मिटाने का साधन नहीं माना, बल्कि इसे आत्मसंयम और आध्यात्मिक साधना का मार्ग बताया है।

व्रत का असली उद्देश्य
- व्रत सच्चे मन, शुद्ध विचारों और साफ नीयत से रखा जाए।
- इसे सिर्फ डाइटिंग का बहाना बनाकर न रखें।
- व्रत में तेल वाले चिप्स या स्नैक्स खाकर समय बिताना, असली भावनाओं से जुड़ा व्रत नहीं कहलाता।
- व्रत कभी भी दूसरों को प्रभावित करने या दिखावा करने के लिए नहीं होना चाहिए।

व्रत: श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक
व्रत का महत्व तभी है जब उसमें सच्ची श्रद्धा, भक्ति और आस्था हो।
यह केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है।
जब हम अपने विचारों को सकारात्मक रखते हैं, मन को साफ रखते हैं और ईश्वर में सच्चे मन से ध्यान लगाते हैं, तभी व्रत सफल होता है।

✨ निष्कर्ष:
नवरात्रि के व्रत का एक ही सरल नियम है – सच्चे मन, शुद्ध नीयत और श्रद्धा के साथ व्रत रखना।
याद रखिए, व्रत केवल भोजन छोड़ने का नाम नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने और ईश्वर से जुड़ने का माध्यम है।

Jai Mata Di 🌺🙏❤️
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